क़िस्त 15
1
ये रात, ये तनहाई,
सोने कब देती,
वो तेरी अंगड़ाई।
2
जो तू ने कहा, माना
तेरी निगाहों में,
फिर भी हूँ अनजाना।
3
कुछ दर्द-ए-ज़माना
है,
और ग़म-ए-जानां
1
जीने का बहाना
है
4
कूचे जो गए तेरे,
सजदे से पहले,
याद आए गुनह
मेरे।
5
इक वो भी ज़माना
था,
जब जब तुम रूठी,
मुझको ही मनाना
था।
1 प्रेयसी का ग़म
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