क़िस्त 23
1
रिश्तों की तिजारत में,
ढूँढ रहे हो क्या,
इस दौर-ए-रवायत में।
2
क्या वस्ल की रातें थीं
और न था कोई.
हम तुम थे, बातें
थीं।
3
कुरसी से रहा
चिपका,
कैसे मैं जानूँ
यह ख़ून बहा
किसका ?
4
अच्छा न, बुरा
जाना
दिल ने कहा
जितना
उतना ही सही
माना
5
वो आग लगाते हैं,
फ़र्ज़ मगर अपना,
हम आग बुझाते
हैं।
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