गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 23

 

क़िस्त 23

 

1

रिश्तों की तिजारत में,

ढूँढ रहे हो क्या,

इस दौर-ए-रवायत में। 

 

2

क्या वस्ल की रातें थीं

और न था कोई.

हम तुम थे, बातें थीं।

 

3

कुरसी से रहा चिपका,

कैसे मैं जानूँ

यह ख़ून बहा किसका ?

 

4

अच्छा न, बुरा जाना

दिल ने कहा जितना

उतना ही सही माना

 

5

वो आग लगाते हैं,

फ़र्ज़ मगर अपना,

हम आग बुझाते हैं।

 

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