गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 24

 

 

क़िस्त 24

1

ये इश्क़, वफ़ा, कसमें,

सुनने में आसाँ,

मुश्किल है बहुत रस्में।

 

2

दिल क्या चाहे जानो,

मैं न बुरा मानू,

तुम भी न बुरा मानो।

 

3

सच, कितनी हसीं हो तुम,

चाँद मैं क्या देखूँ

ख़ुद माहजबीं हो तुम।

 

4

जाड़े की धूप सी तुम,

फूल पे ज्यों शबनम,

लगती हो रुपसी ,तुम !

 

5

भीगा न मेरा आँचल,

लौट गए घर से,

                                                बरसे ही बिना बादल।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें