क़िस्त 24
1
ये इश्क़, वफ़ा, कसमें,
सुनने में आसाँ,
मुश्किल है बहुत रस्में।
2
दिल क्या चाहे जानो,
मैं न बुरा मानू,
तुम भी न बुरा मानो।
3
सच, कितनी हसीं
हो तुम,
चाँद मैं क्या
देखूँ
ख़ुद माहजबीं हो
तुम।
4
जाड़े की धूप सी
तुम,
फूल पे ज्यों
शबनम,
लगती हो रुपसी ,तुम !
5
भीगा न मेरा
आँचल,
लौट गए घर से,
बरसे ही बिना बादल।
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