क़िस्त 25
1
टूटा जो खिलौना है,
ये तो होना था,
किस बात का रोना है ?
2
नाशाद है खिल कर भी,
प्यासी है नदिया,
सागर से मिल कर भी।
3
कुछ दर्द दबा
रखना,
मोती-से आँसू,
पलकों में छुपा
रखना।
4
इतना तो बता देते,
क्या थी ख़ता
मेरी ?
फिर जो भी सज़ा
देते।
5
बस हाथ मिलाते
हो,
एक छलावा सा,
रिश्ता न निभाते
हो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें