क़िस्त 26
:1:
इतना तो कर साथी,
आ जा चुपके से,
कर दिल में घर साथी।
:2:
साँसो का बन्धन है,
टूटेगा कैसे ?
रिश्ता जो पावन है।
:3:
दिल और धड़कने दो,
रुख पर है पर्दा,
कुछ और सरकने दो।
:4:
अपनी तो आदत है,
हुस्न परस्ती1
में,
दिल
राह-ए-ज़ियारत 2 है।
5
करता हूँ ख़ता फिर भी,
लाख ख़फ़ा हो कर,
करता वो वफ़ा फिर
भी।
1 सौन्दर्य पर मुग्धता
2 पूजन मार्ग पर
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