क़िस्त 29
:1:
दीवार उठाते हो,
तनहा जब होते,
फिर क्यूँ घबराते हो?
:2:
इतना
भी सताना क्या !
दम
ही निकल जाए,
फिर
बाद में आना क्या !
:3;
ये
हुस्न की रानाई,
तड़पेगी
यूँ ही
गर
हो न पज़ीराई।
:4:
दुनिया
के सारे ग़म,
इश्क़
में ढल जाए
बदलेगा
तब मौसम।
5
क्या हाल बताना है,
तेरे
फ़साने में
मेरा
भी फ़साना है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें