क़िस्त 30
:1:
तुम से गर जुड़ना है,
मतलब है इस का,
बस ख़ुद से बिछुड़ना है।
:2:
आने
को आ जाऊँ,
रोक
रहा कोई
कैसे
मैं ठुकराऊँ ?
:3:
इक
लफ़्ज़-ए-मुहब्बत है,
जिस
के लिए मेरी
दुनिया
से अदावत है।
:4;
दीदार
हुआ जब से,
जो
भी रहा बाक़ी
ईमान
गया तब से।
5
जब
तू ही मेरे दिल में,
ढूँढ
रहा हूँ मैं
फिर
किस को महफ़िल में ?
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