शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 31

क़िस्त 31

:1:

माना कि तमाशा है,

कार--जहाँ में सब

फिर भी इक आशा है।

 

 :2:

दरपन तो दरपन है,

झूठ नहीं बोले

सच बोल रहा मन है।

 

 :3:

क्या छाईं घटाएँ हैं,

दिल है रिन्दाना

बहकी सी हवाएँ हैं।

 

:4:

जितना देखा है फ़लक,

उतनी ही उसकी

आँखों में सच की झलक।

 

5
 कैसा ये नशा, किसका

किसने देखा है

एहसास है बस उसका

 

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