क़िस्त 31
:1:
माना कि तमाशा है,
कार-ए-जहाँ में सब
फिर भी इक आशा है।
:2:
दरपन तो दरपन है,
झूठ नहीं बोले
सच बोल रहा मन है।
:3:
क्या छाईं घटाएँ
हैं,
दिल है रिन्दाना
बहकी सी हवाएँ
हैं।
:4:
जितना देखा है
फ़लक,
उतनी ही उसकी
आँखों में सच की
झलक।
5
कैसा ये नशा, किसका
किसने देखा है
एहसास है बस उसका
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