क़िस्त 37
:1:
यह दिल ख़ामोश रहा,
कह न सका कुछ भी
इसका अफ़सोस रहा।
;2:
ये कैसी रवायत है?
जाने क्यों तुम को
मुझ से ही शिकायत है?
:3:
तुम ने ही बनाया है,
ख़ाक से जब मुझ को
फिर ऐब क्यों
आया है?
:4:
सच है, इनकार नहीं,
’तूर’ 1 पे आए, वो
लेकिन दीदार नहीं ।
5
मुझको अनजाने
में,
लोग पढ़ेंगे कल
तेरे अफ़साने में।
1 तूर [ कोह-ए-तूर] – उस पहाड़ का नाम है जहाँ हज़रत
मूसा ने अल्लाह का जल्वा देखा,
बातचीत की मगर
’दीदार’ फिर भी न हुआ।
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