क़िस्त 38
:1:
जिनका हूँ दीवाना,
देख रहें हैं, वो
जैसे मैं बेगाना।
:2:
कोरी न चुनरिया है,
कैसे मैं आऊँ ?
खाली भी गगरिया है।
;3:
कुछ भी तो नहीं
लेती,
ख़ुशबू गुलशन की
फूलों का पता
देती।
:4:
दुनिया का मेला
है,
सब अपने ही हैं,
दिल फिर भी
अकेला है।
5
केसर की क्यारी
में,
ज़हर उगाने की
सब क्यों तैयारी
में ?
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