क़िस्त 39
:1:
वह ख़्वाब दिखाते हैं,
जन्नत के हक़ में
जन्नत ही जलाते हैं।
:2;
नफ़रत, शोले, फ़ित्ने
बस्ती जली किसकी
रोटी सेंकी, किसने ?
:3:
यह कैसी सियासत
है?
धुन्ध, धुँआ
केवल
यह किस की
विरासत है?
;4:
रहबर बन कर आते,
छोटे बच्चों से,
पत्थर हैं चलवाते।
5
यह इश्क़ इबादत
है,
दैर-ओ-हरम 1 दिल
है,
फिर किसकी
ज़ियारत है।
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