क़िस्त 40
:1:
जीवन की निशानी है,
रमता जोगी है
और बहता पानी है।
;2:
मथुरा या काशी क्या,
मन ही नहीं चमका
घट क्या, घटवासी क्या।
:3:
ख़ुद को देखा होता,
मन के दरपन में
तो सच का पता
होता।
:4:
बेताब न हो, ऎ दिल!
लौ तो जगा पहले
फिर जाकर उनसे मिल।
5
इतना ही समझ
लेना,
मै हूँ तो तुम हो
क्या और सनद देना।
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