क़िस्त 41
:1:
सदक़ात भुला मेरा,
एक गुनह तुम को
बस याद रहा मेरा।
:2:
इक चेहरा क्या भाया,
हर चेहरे में वो
मख़्सूस1 नज़र आया।
;3:
हो जाता हूँ पागल,
जब जब काँधे से
ढलता है तेरा आँचल।
4
उल्फ़त
की यही ख़ूबी.
पार
लगी उसकी
कश्ती
जिसकी डूबी ।
5
क्या और तवाफ़2
करूँ,
इतना ही समझा,
मन
पहले साफ़ करूँ।
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