क़िस्त 42
:1:
दो चार क़दम चल कर,
छोड़ न दोगे तुम,
सपना बन कर, छल कर?
:2:
जब तुम ही नहीं हमदम,
सांसे भी कब तक
देगी यह साथ, सनम !
:3:
दुनिया की कहानी
में,
शामिल है
सुख-दुख,
मेरी भी कहानी
में।
:4;
विपरीत हुई धारा,
और हवाओं ने
कश्ती को ललकारा।
5
कितनी भोली सूरत,
रब ने बनाई हो,
जैसे तेरी मूरत।
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