क़िस्त 44
:1:
खुद तूने बनाया है.
माया का पिंजरा,
ख़ुद क़ैद में आया है।
:2:
किस बात का है रोना?
छोड़ ही जाना है
फिर क्या पाना, खोना ?
:3:
जब चाँद नहीं
उतरा,
खिड़की मे, तो फिर
किसका चेहरा
उभरा ?
:4:
जब तुमने पुकारा
है
कौन यहाँ ठहरा ?
लौटा न दुबारा
है।
5
वो प्यार भरी
बातें,
अच्छी लगती थीं,
छुप छुप के
मुलाकातें।
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