क़िस्त 45
:1:
सब ग़म के भँवर में हैं,
कौन किसे पूछे?
सब अपने सफ़र में हैं।
;2:
अपना ही भला देखा,
कब मैने देखी,
अपनी लक्षमन रेखा?
:3:
माया की नगरी
में,
बाँधोंगे कब तक
इस धूप को गठरी
में ?
:4:
होठों पे तराने
हैं,
आँखों में किसके
बोलो, अफ़साने
हैं ?
5
जो चाहे, दे
देना,
चाहत क्या मेरी
आँखों से समझ लेना।
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