क़िस्त-48
:1:
क्यों दुख से घबराए ?
धीरज रख मनवा,
मौसम है, बदल जाए।
:2:
तलवारों पर भारी,
एक कलम मेरी,
और इसकी खुद्दारी।
:3:
सुख-दुख आए जाए,
सुख ही कहाँ
ठहरा,
जो दुख ही ठहर
पाए।
:4:
तेरी नीली आँखें,
ख़्वाबों को मेरे
देती रहती
साँसें।
5
इक नन्हीं सी
चिड़िया,
खेल रही जैसे
मेरे आँगन
गुड़िया।
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