क़िस्त-56
:1:
ये कैसी माया है?
तन तो है अपना,
मन तुझ में समाया है।
:2:
इस फ़ानी हस्ती पर
दाँव लगाए ज्यों
कागज़ की कश्ती पर
:3:
ये कैसा रिश्ता
है,
ओझल है फिर भी,
दिल रमता रहता
है।
:4:
बेचैन बहुत है
दिल,
कब तक मैं तड़पूं?
अब तो बस आकर
मिल।
:5:
अन्दर की सब
बातें
लाख छुपाओ तुम
कह देती हैं आँखें
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