क़िस्त-59
:1:
सब क़स्में खाते हैं,
कौन निभाता है?
कहने की बाते हैं।
:2:
क्या हुस्न निखारा है?
जब से डूबा मन,
उबरा न दुबारा है।
:3:
इतना न सता,
माहिया !
क्या थी ख़ता
मेरी,
इतना तो बता
माहिया ?
:4:
बेदाग़ चुनरिया
में,
दाग़ लगा बैठे,
आकर इस दुनिया
में।
:5:
क्या दर्द बताना
है,
एक तेरा ग़म है,
इक दर्द-ए-जमाना
है।
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