शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 59

 क़िस्त-59

:1:

सब क़स्में खाते हैं,

कौन निभाता है?

कहने की बाते हैं।

 

:2:

क्या हुस्न निखारा है?

जब से डूबा मन,

उबरा न दुबारा है।

 

:3:

इतना न सता, माहिया !

क्या थी ख़ता मेरी,

इतना तो बता माहिया ?

 

:4:

बेदाग़ चुनरिया में,

दाग़ लगा बैठे,

आकर इस दुनिया में।

 

:5:

क्या दर्द बताना है,

एक तेरा ग़म है,

इक दर्द-ए-जमाना है।

 

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