क़िस्त 60
:1:
क्यों ख़्वाब-ए-जन्नत में
डूबा है, ज़ाहिद!
हूरों की जीनत में?
:2:
ये हुस्न की रानाई,
नाज़,अदा फिर क्या
गर हो न पज़ीराई !
:3:
ग़ैरों की बातों
को,
मान लिया सच
क्यों,
सब झूठी बातों
को?
:4:
इतना ही फ़साना
है,
फ़ानी दुनिया में,
बस आना-जाना है।,
:5:
तुम कहती, हम सुनते
बीत गए वो दिन,
सपने बुनते बुनते
।
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