क़िस्त 63
1
क्या दर्द बताऊँ, मैं ?
कौन सुनेगा अब,
फिर किसको सुनाऊँ मैं?
2
क्या तुमने था ठाना ?
छोड़ के दुनिया को,
चुपके से चले जाना।
3
किसकी पाबन्दी
थी?
जाने की तुम को,
इतनी क्या जल्दी
थी?
4
जितना भी जिया
तुमने,
देने का सोचा,
कुछ भी न लिया
तुमने।
5
दिन रात वही
बातें
कैसे गुज़रे दिन,
कैसी बीती रातें?
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