क़िस्त 64
1
घिर घिर आए बदरा,
बादल बरसा भी,
भीगा न मेरा अँचरा।
2
कुछ सपने दिखला कर,
लूट लिए मुझको,
सपनों के सौदागर।
3
कुछ रंग लगा ऐसा,
बन जाऊँ मैं भी,
कुछ कुछ तेरे
जैसा।
4
सब प्यार जताते
हैं,
कौन हुआ किसका,
सब अपनी गाते
हैं?
5
माजी की यादें
हैं,
लगता है जैसे,
कल की ही बातें
हैं।
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