शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 64

 क़िस्त 64

 

1

घिर घिर आए बदरा,

बादल बरसा भी,

भीगा न मेरा अँचरा।

 

2

कुछ सपने दिखला कर,

लूट लिए मुझको,

सपनों के सौदागर।

 

3

कुछ रंग लगा ऐसा,

बन जाऊँ मैं भी,

कुछ कुछ तेरे जैसा।

 

4

सब प्यार जताते हैं,

कौन हुआ किसका,

सब अपनी गाते हैं?

 

5

माजी की यादें हैं,

लगता है जैसे,

कल की ही बातें हैं।

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