क़िस्त 66
1
कब इश्क़ रहा आसाँ?
चल ही पड़ा है तो,
रुकना न दिल-ए-नादाँ।
2
दिल था भोला भाला,
होम किया जब जब,
ख़ुद हाथ जला डाला।
3
तुमको तो नहीं
आना,
मान लिया मैने,
पर दिल ने नहीं
माना।
4
दीदार न होना है,
वाक़िफ़ हूँ मैं
भी,
पर ख़्वाब सजोना
है।
5
कब तुमने निभाया
है,
झूठे वादे पर,
दिल फिर भी आया
है।
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