क़िस्त 70
1
दुनिया का मेला है,
ख़त्म हुआ, साथी !
चलने की बेला है।
2
कहने को कहता है,
अपना होकर भी,
दिल में कब रहता है?
3
क्या क्या न कराती
है,
माया कुर्सी की,
दस्तार1
गिराती है।
4
क्या पाया, क्या
खोया,
इन्हीं ख़यालों
में,
दिन रात नहीं
सोया।
5
करता भी क्या करता,
पर्दे के पीछे,
इक और बड़ा परदा।
1 पगड़ी,इज्जत
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