क़िस्त 71
1
दिल है दरहम बरहम 1
चैन मिले कैसे?
आँखें भी हैं पुरनम 2
2
दीदार न होना है,
वाक़िफ़ हूँ मैं भी,
बस ख़्वाब सजोना है।
3
जीवन की राह अलग,
कितना मैं झुकता?
बस अपनी राह अलग।
4
क्या उन से अब कहना,
ज़ोर-ए-सितम
3 उनका,
दिल को है पड़ा
सहना।
5
उनकी है
निगहबानी,
हाल हमारा क्या,
बस रब की
मिहरबानी।
1 अस्त-व्यस्त , 2 भरी हुई, अश्रु-पूरित 3 अत्याचार
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