शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 72

 क़िस्त 72

1

इक तो तेरा यौवन,

यूँ ही कहर ढाता,

उस पर यह अल्हड़पन।

 

2

चलता न बहाना है,

जब भी पुकारे वो,

जाना ही जाना है।

 

3

वो पास मेरे जब से,

खुद में नहीं ख़ुद हूँ,

क्या माँगू मैं रब से।

 

4

क्या क्या न सहे हमने,

तेरे जुल्मों पर,

उफ़ तक न कहे हमने।

 

5

मदमस्त हवाएँ है.

तुम भी आ जाते,

घिर आईं घटाएँ हैं।


 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें