शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 74

 क़िस्त 74

 

1
इक हुस्न-ए-क़यामत है,
जान पे बन आई,
आँखों की शरारत है।


3
अब ज़ौर1 के क़ाबिल है,
मान लिया तुम ने,
मक़्रूज़ 2 हुआ दिल है।  

 

2
रुखसार3 पे काला तिल,
लगता है जैसे,
तुम से भी बड़ा क़ातिल।


4
आँखों का नशा क्या है?
जानोगे कैसे?

             जीने का मज़ा क्या है ?


5
फूलों सा बदन तेरा,
उस पर यह बोझिल,
खुशबू का वज़न तेरा।

 

 1 अत्याचार, 2- ऋणी ,कर्जदार, 3 गाल

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