क़िस्त 75
1
क्या वस्ल की रातें थीं,
और न था कोई,
हम तुम थे, बातें थीं।
2
मासूम सी अँगड़ाई,
जब जब ली तुम ने,
बागों में बहार आई।
3
साँसों में घुली हो तुम,
सिमटी रहती हो,
अबतक न खुली हो तुम।
4
रौनक है महफ़िल की,
एक हँसी तेरी,
जीनत है हर दिल की।
5
हँसती
हुई राहों में,
दर्द भरा किसने
ख़ामोश
निगाहों में?
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