शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 75

क़िस्त 75

1
क्या वस्ल की रातें थीं,
और न था कोई,
हम तुम थे, बातें थीं।

 

2
मासूम सी अँगड़ाई,
जब जब ली तुम ने,
बागों में बहार आई।

 

3
साँसों में घुली हो तुम,
सिमटी रहती हो,
अबतक न खुली हो तुम।

 

4
रौनक है महफ़िल की,
एक हँसी तेरी,
जीनत है हर दिल की।

 

5

हँसती हुई राहों में,
दर्द भरा किसने

ख़ामोश निगाहों में?

 

 

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