शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 77

 क़िस्त 77

1
जब जान ही है लेना,
और तरीक़े भी,
बस रूठ के हँस देना।


2
तुम पर न अगर मरता,
तुम ही कहों जानम,
दिल आख़िर क्या करता?


3
कुछ चाह नहीं दिल में,
तुम को ही देखूँ,
इक माह-ए-कामिल1 में।


4
इक प्यार को पा लेना,
काँटॊं को जैसे,
पलको से उठा लेना।


5
दुनिया है सियह्खाना,
शर्त मगर यह भी,
बेदाग़ निकल आना।

 

 

1-   पूर्णिमा का चाँद

 

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