शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 79

 क़िस्त  79

 

1

 ग़म अपना ढो लेंगे,

पूछोगी जब तुम,

"अच्छा हूँ’-बोलेंगे।

 

2

माना जख़्मी है दिल,

कैसे समझे तुम, 

ये इश्क़ के नाक़ाबिल ?

 

3

ये कैसी शरारत है ,

चिलमन में छुप कर,

करता वो इशारत है। 

 

4

जख़्मों को छुपा रखना,

कम तो नहीं ’आनन’, 

ग़म अपना दबा रखना।

 

5

यह जादू किसका है?

उजड़े चमन में भी,

यह नूर जो छिटका है।

 

 

 

 

 

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