शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 83

 क़िस्त 83

1

अब क्या जीना तुम बिन,
आस यही मन में, 
आओगे तुम इक दिन।


2
खिंचता जाता मन है,
तेरी आँखों में,
कैसा आकर्षन है?


3
पीड़ा अनजानी है,
एक सी क्यों लगती,
दोनों की कहानी है?


4
कह दो जो कहना है,
वक़्त बहुत कम है,
कितने दिन रहना है। 


5

यह स्नेह का बन्धन है, 

आप यहाँ आए, 
स्वागत अभिनन्दन है।

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