क़िस्त 85
1
भँवरों की बात चली,
कलियों को लगती,
उनकी हर बात भली।
2
तुम छोड़ गए
जब से,
सूनी हैं रातें,
दिल रोता है
तब से।
3
हर हर्फ़ उभर
आया,
दिल पर कल
मेरे,
खोया था ख़त, पाया।
4
दो शब्द में
सौ बातें,
कितने ख़यालों
से,
गुज़री होंगी
रातें ?
5
एहसास् तो
मुझको है,
जितना है
मुझको,
क्या उतना तुझको
है ?
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