शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 87

 क़िस्त 87

1
यूँ रूठ के चल देना,
हौले से हँस कर,
फिर बात बदल देना।
 

2

अबतक क्या कम भोगा !

उल्फ़त में तेरे,

जो होना है होगा।

 

3

ख़ामोश सदा रहती,

पहलू में आ कर,

कुछ तुम भी तो कहती। 

 

4

वह राज़ न खोलेगा,

पूछ रही हो क्या,

दरपन क्या बोलेगा?

 

5

लहरा कर चलती हो,

खुद से छुप छुप कर, 

ख़ुद छत पे टहलती हो।

 

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