शुक्रवार, 26 मार्च 2021

माहिया 84

 क़िस्त 84

1
कहने में हिचक क्या है !
यूँ न दबा रख्खो,
इतनी भी झिझक क्या है !

 

2

जो कहनी थी कह दी.

समझो ना समझो,

तुम बात मेरे मन की।

 

3

लिखने में अड़चन थी,

मुझसे कह देते,

जो मन की उलझन थी।

 

4

उलफ़त का तक़ाज़ा है,

धीरे से खुलता,

दिल का दरवाज़ा है 

 

5

भँवरा तो भँवरा है,

एक कली पर वो,

रहता कब ठहरा है ? 

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