क़िस्त 90
1
रह-ए-इश्क़ से जो गुज़रा,
दीवाना हो कर,
फिरता सहरा सहरा।
2
जाने अनजाने में,
उम्र गुज़र जाती,
सपने ही सजाने में।
3
जीना आसान नहीं,
कौन यहाँ ऐसा,
खुद से परेशान नहीं
?
4
दो दिल के बन्धन
से,
अमरित भी निकले,
जीवन के मन्थन
से।
5
इस दिल में उतर
आओ,
महकेगा तन-मन,
अब और न तड़पाओ॥``
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