अनुभूतियाँ 13
क़िस्त 13
1
रात रात भर जग कर चन्दा
ढूँढ रहा है किसे गगन में ?
थक कर बेबस सो जाता है
दर्द दबा कर अपने मन में
2
बीती रातें, बीती बातें
मुझको कब सोने देती
हैं ?
क़समें तेरी खड़ी सामने
मुझको कब रोने देती हैं ?
3
कौन सुनेगा दर्द हमारा
वो तो गई, जिसे सुनना था
आने वाले कल की ख़ातिर
प्रेम के रंग मे जब रँगना था
4
सपनों के ताने-बानों से
बुनी चदरिया रही अधूरी
वक़्त उड़ा कर कहाँ ले गया
अब तो बस जीना मजबूरी
-आनन्द.पाठक-
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