अनुभूतियाँ 18
1
वह निर्णय स्वयं तुम्हारा था
क्या ग़लत रहा ,क्या सही रहा
अब कौन भला इस पर सोचे
जो दिल ने सोचा ,वही रहा
2
इतना न भरोसा कर ,पगले !
उड़ते बादल का ठिकाना क्या
आज यहाँ ,कल और कहीं है
उसको हमराज़ बनाना क्या !
3
झूठे सपने मत देखा कर
दिन-रात यूँ ही जगते -सोते
दुनिया के नियम अलग ,प्यारे!
सपने कब ये पूरे
होते !
4
चुपके चुपके बातें करतीं
यादें तेरी तनहाई
में
क्या क्या सपन नहीं बुनते थे
जीवन की उस तरूणाई
में
-आनन्द.पाठक-
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