अनुभूतियाँ 20
1
मेरे मन की इस दुनिया में
एक तुम्हारी भी दुनिया थी
आज वहाँ बस राख बची है
जहाँ कभी अपनी बगिया थी
2
सौ सौ जतन किए थे मैने
लेकिन तुम को रोक न पाया
आख़िर तुम ने वही किया जो
दुनिया ने तुम को समझाया
3
तुम भी क्या तारे गिनती हो
सूनी सूनी इन रातों
में
जाओ तुम भी सो जाओ अब
क्यों उलझी हो उन बातों में
4
काल चक्र है, चलना ही है
कोई गिरता उठता कोई
जीवन मरण का सत्य यही है
कोई सोया ,जगता कोई
-आनन्द पाठक-
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