गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 20

 

1
 मेरे मन की इस दुनिया में
एक तुम्हारी भी दुनिया थी
आज वहाँ बस राख बची है
जहाँ कभी अपनी बगिया थी
 
2
सौ सौ जतन किए थे मैने
लेकिन तुम को रोक न पाया
आख़िर तुम ने वही किया जो
दुनिया ने तुम को  समझाया
 
3
तुम भी क्या तारे गिनती हो
सूनी सूनी इन रातों  में
जाओ तुम भी सो जाओ अब
क्यों उलझी हो उन बातों में
 
4
काल चक्र है, चलना ही है
कोई गिरता उठता कोई
जीवन मरण का सत्य यही है
कोई सोया ,जगता कोई

-आनन्द पाठक-
 

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