अनुभूतियाँ 23
1
ईद हमारी आज हुई है
चाँद जो लौटा घर को अपने
एक झलक पाने की ख़ातिर
एक माह व्रत रख्खा हमने
2
इतनी दूर आ गए हम तुम
लौट के जाना है नामुमकिन
और कहाँ तक साथ चलोगी
प्रश्न वही है अब भी लेकिन
3
हाथ न रख्खो इन काँधो पर
आँसू हैं इनको बहने दो
मैने ही पाला है इनको
दर्द हमारे संग रहने दो
4
होली का मौसम आया है,
’फ़गुनह्टा’ आँचल सरकाए।
मादक हुई हवाएँ, प्रियतम !
रह रह कर है मन भटकाए
।
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