1
अगर न तेरी राहगुज़र यह
राह हमारे किए व्यर्थ है
साथ सफ़र में अगर नहीं तुम
नहीं सफ़र का कोई अर्थ है
2
साथ अगर चलना ही नहीं था
फिर क्यों मुझे बुलाया तुम ने
चार क़दम ही चल कर बैठे
कैसा साथ निभाया तुमने ?
3
मालूम था मुझ को पहले ही
क्या हैं सीमा, क्या मजबूरी
सफ़र शुरू होने से पहले
ख़ुद ही बना ली तुम ने दूरी
4
सूरज चढ़ता सुबह अगर तो
शाम शाम तक ढलना ही है
समय चक्र का पहिया घूमे
मौसम है तो बदलना भी है
-आनन्द.पाठक-
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