अनुभूतियाँ 31
1
अंगारों को गठरी में रख
बाँध सका है ,कौन आजतक?
दो धारी तलवार इश्क की
साध सका है कौन आज तक ?
2
आज खड़ा हूँ दोराहे पर
दोनों ही राहों में उलझन
एक राह में सुखद कल्पना
दूजे मैं है व्यथित थकित मन
3
मेरी चाहत एक दिखावा
कह कर तुम ने किया किनारा
शायद तुम ने ना देखा हो
जीता कैसे दिल का हारा
4
साथ अगर तुम छोड़ न देती
साथ तुम्हारे चल सकता था
और किसी को चाहूँ ,तौबा
खुद को नहीं बदल सकता था
-आनन्द.पाठक-
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