अनुभूतियाँ 32
1
जब से तुम हमराह हुए हो
साथ हमारे खुद ही मंज़िल
और हमे अब क्या ग़म होगा
राह सुगम हो या हो मुशकिल
2
’और मिल गया होगा कोई’
ऐसा तुम ने कैसे सोचा
क़दम लड़खड़ा रहे तुम्हारे
मुझ पर क्या अब नहीं भरोसा
3
ज़ुल्फ़ें छू कर आती तेरी
बाद-ए-सबा गाती है सरगम
पूछ रहीं हैं कलियाँ कलियाँ
बेमौसम क्यों आया मौसम
4
पास भी आकर दूर हो गए
दिल ने जिसको चाहा हर दम
शाप लगा या नज़र लग गई
मैं क्या जानू तेरे हमदम
--आनन्द.पाठक-
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