अनुभूतियाँ 37
1
भूल तुम्हारी या मेरी थी
कौन इसे अब बतलाएगा
बात खतम जब हो ही गई तो
व्यर्थ कोई क्यॊं समझाएगा
2
आने को तो आएगी ही
फिर बहार मन के उपवन में
फ़ूलों पर वह रंग न होगा
पहले जैसा था जीवन में
3
आग अगर हो दिल में जिन्दा
लगनी है तो लग जाती है
चाह, तमन्ना, इश्क़ ,आरज़ू
धीरे धीरे जग जाती है
4
वो तो गई ,उसको जाना था
तुमने दिया सहारा मुझको
मैं तो कब का टूट चुका था
हिम्मत मिली दुबारा मुझको
-आनन्द.पाठक-
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