अनभूतियाँ 40
1
इतने तारे बिखरे नभ में
नहीं रोशनी हुई धरा पर
हर तारे को भरम यही है
वहीं चाँद है ,वही भास्कर
2
लाखो तारे नील गगन में
एक सितारा तन्हा भी है
खुशियाँ सबसे मिल कर बाँटी
दर्द अकेले सहना भी है
3
बात तुम्हारी यूँ तो सही है
मौसम,सुख-दुख,आना,जाना
जीवन के इस रंग मंच पर
जो भी हो किरदार निभाना
4
जख़्म भला है कौन सा ऐसा
वक़्त न जिसको भर पाएगा
जख़्म दिया जो तुमने मुझको
इक दिन ये भी भर जायेगा
-आनन्द.पाठक-
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