शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 43

 1
शाम ढली,जब सूरज डूबा
धीरे धीरे “मै” भी छूटा
बाँध सका मुठ्ठी में कितना
एक भरम था मेरा टूटा
 2
सोच रहा था जाने कब से
सच में तुम थी या माया थी
रूप तुम्हारा आभासी था
या छाया की प्रति छाया थी
 3
हानि-लाभ कुछ सोचा होगा
फिर सोच समझ मुँह मोड़ लिया
और कहूँ क्या इस से ज़ियादा
अच्छा ही किया दिल तोड़ दिया
4
देख लिया तेरी दुनिया को
घात कुटिल और मीठी बानी
रूप भले ही अलग अलग हो
चाल मगर जानी पहचानी
-आनन्द.पाठक-

 

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