अनुभूतियाँ 45
1
नहीं नवाज़िश रही तुम्हारी
फूल सूखने लगे चमन के
पहले वाली बात नहीं अब
फूल महकते थे जब मन के
2
सावन की रिमझिम बूँदे भी
रह रह तन में आग लगाती
पिछले बरस झुलाया झूला
अब की बरस है याद झुलाती
3
दिल पर तुम क्यों ले लेती हो
दुनिया वालों की बातों को
उनके तो बस काम यही है
तुम क्यों जगती हो रातों को
4
झूठ इसे कैसे मैं मानू
आँखों देखी सब बाते हैं
तेरे आँचल में खुशियाँ है
मुझको ग़म की सौगाते हैं
-आनन्द.पाठक-
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