1
मैने कब तुम से बोला था
जीवन मेरा धुला हुआ है
जब तुम चाहो, तब पढ़ लेना
पन्ना पन्ना खुला हुआ है
दुनिया को मालूम नहीं है
क्या क्या बात हुई थी तुम से
कोशिश लाख रही लेकिन कब
मन की गाँठ खुली थी तुम से
कितनी बार सफ़ाई दूँ मैं
कितनी बार तुम्हे समझाया
लेकिन कब स्वीकार तुम्हें है
सच मेरा, हर बार बताया
तुम से पहले थी यह दुनिया
बाद तुम्हारे भी यह रहेगी
सोने के मृग कब होते हैं ?
होनी है तो हो के रहेगी
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें