शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

अनुभूतियाँ 54

 

1
अच्छा, कोई बात नहीं है
जाना चाहो, जा सकती हो
मेरा दर यह खुला रहेगा
जब चाहो तुम आ सकती हो
 
2
सबकी होती है दुनिया में
अपनी अपनी कुछ मजबूरी
बिना सुने ही बातें मेरी
व्यर्थ बना ली तुम ने दूरी
 3
माना मेरी ही ग़लती थी
अब तो बताओ क्या है करना
कब तक उन बातों में रहोगी
या इससे है कभी उबरना ?
 4
बात चली तो कई कहाँ तक
रातों-रात कहाँ तक फ़ैली
तिल का ताड़ बना देते हैं
दुनियावालों की है शैली

-आनन्द.पाठक-

 

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