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ऊँगली कहाँ उठाएँ किस पर
सभी सियासत में काले हैं
शहद भरे हैं उनके मुँह में
घड़ियाली आँसू वाले हैं
ऎसी कोई बात नहीं थी
तिल का तुम ने ताड़ बनाया
अच्छा खासा ’लान’ हरा था
नागफ़नी काँटा उग आया
तनहा तनहा चल न सकोगी
मिलजुल कर चलना ही बेहतर
मोड़ मोड़ पर रहजन होंगे
रह जाओ तुम कहीं न लुट कर
ऊँगली सभी उठाते मुझ पर
नहीं किसी ने खुद में झाँका
सबने अपने ही नज़रों से
जैसा देखा, मुझको आँका
-आनन्द.पाठक-
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