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चाँद सदा चमका करता है
सूरज की किरनों के दम पर
भला चमकता तुम बिन कैसे
मन मेरा सब झूठ भरम से ?
सफ़र क़लम का चलता रहता
सुख मे, दुख में. जुल्म-सितम में
अँधियारों से लड़ना है तो
नई रोशनी भरो क़लम में
दर्द छुपा कर हँसना तुम ने
सीखा कहाँ, बता दो हमदम !
लाख छुपाना मैं भी चाहूँ
पढ़ लेते हो कैसे ,प्रियतम !
यही हुनर जो छूट गया था
वादा करना और न आना
तुमने अब पूरा कर डाला
रोज़ बनाना एक बहाना
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